Friday, 8 May 2020

बहुत दिनों बाद (A poem on Introspection & Dreams)

बहुत दिनों बाद,
खुदसे कुछ बात चली,
खोई मुलाकात,
और खुवाईशे बेशूमार रही ।।
भूली पहचान,
फिर आइने से, मुख़ातिब हुई।
शब्दो से दूर,
बिन लफ्जो संग, वो बात चली ।।
पूछे सवाल,
और जवाब की, तलाश हुई।
खुद से दूर,
आज खुदकी आवाज़ मिली ।
घर मे बंधे,
जब घर की चारदीवारी में,
हम फिर चले,
खोए अक्स और खुदको,
हम फिर टटोलते रहे ।।
शौक थे जो पुराने,
आज खुवाईशे बन,
सन्दूक में मिले,
राह तकते थे हम जिनकी,
आज वो फिर, हमसे गले मिले ।।
ढूंढते हुए नई उड़ान,
आज पंछी भी आज़ाद चले,
और है जो बंदिशो में बंधे,
आज खुदसे कही दूर उड़े।

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