Thursday, 18 August 2016

Anger‬

शब्दों से खेलता हूँ,
शब्दों मैं ही उलझ जाता हूँ।
जुबां से मिठास नहीं
क्यों, क्रोध घोल जाता हूँ ?
दुनिया की महफ़िल मैं,
अपनों को खो देता हूँ ?
भुलाके दुनिया,
क्यों, शब्दों से वार कर जाता हूँ ?
जब जानते हो मुझे,
एक हँसमुख इंसान की तरह,
ना जानो अब,
क्रोध मैं खोए शैतान की तरह ।
डरता हूँ, कहीं खो ना दू ?
जो है, हरपल ख़ास !
ज़िन्दगी मैं उन्हें, ना मिलने वाले,
कसी, ख्वाब की तरहा !
बदलूंगा, ये जनता हूँ !
कुछ पल और तो रुको,
दिल से अभी,
ना टूटे, बस ये डोर कही !!

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