Thursday, 18 August 2016

Dedicated to my ज़िन्दगी "Papa" Mr. Dinesh Kumar Sharma !!

कहीं खो गए वो पल,
बिन कहे अलविदा, उस पल ।
पूछे आज भी, सवाल ?
हारी कैसे ज़िन्दगी, तुम उस पल ?

भागा जब ज़िन्दगी को लिए,
ज़िन्दगी की आखरी रणभूमि, के लिए ।
हुआ एक अजिब सा आभाव,
जैसे छोड़ आया ज़िन्दगी को, किसी मोक्ष-द्वार ।।

खड़ा था जब उस पल,
सकारात्मकता संग लिए।
तब लड़ रही थी ज़िन्दगी,
यमराज से ज़िन्दगी के लिए।।

चल रहा था बस ये, उसपल।
नहीं होगा कुछ उथल-पतल
फिर हुआ क्यों वो कड़वा आभाव सच,
हारी ज़िन्दगी क्यों, पलक-झपक।।

हुई जब ज़िन्दगी की ख्वाशे पूरी,
नहीं थी वो साथ।
पर खोके भी इस ज़िन्दगी से,
कर गई जीवन मैं,कुछ चमत्कार ख़ास।।

आज भी है वो,
दूर रह के भी हरपल पास,
संग लिए उनकी दी हुई ज़िन्दगी,
और हर पल मैं उनका एहसास ।।

No comments:

Post a Comment

"चल रही एक महामारी"

चल रही एक महामारी, उसपर भभक्ते दिन है भारी । देश थामके, की थी जो तैयारी, अब विफल हो रही, बारी-बारी ।। अम्फान (Cyclone) खेला, संग...