क्यों खोया वो हूनर
जीवन की उलझनो मैं,
लिए बेबाक अंदाज़,
मंज़िल के पर्चिनो से।
जीवन की उलझनो मैं,
लिए बेबाक अंदाज़,
मंज़िल के पर्चिनो से।
वो कला का भवन्दर,
क्यों है मन के अंदर ?
करो फिर वो कमन्दर
ना बनाओ इस हूनर को खण्डर ।
क्यों है मन के अंदर ?
करो फिर वो कमन्दर
ना बनाओ इस हूनर को खण्डर ।
खोता नहीं हूनर,
कलाकारों का कहीं ।
जीवन की व्यास्ता मैं,
बस झाकता है कहीं ।।
कलाकारों का कहीं ।
जीवन की व्यास्ता मैं,
बस झाकता है कहीं ।।
ना ढूंढ़ो खुशियां ,
दुसरो के इशारो से,
बस एक बार खोलो,
वो कला के पिटारे को !!
दुसरो के इशारो से,
बस एक बार खोलो,
वो कला के पिटारे को !!
है सबमे कला,
है सबमे हूनर ।
बस ढूंढना है वो पल,
और वो सफ़र ।।
है सबमे हूनर ।
बस ढूंढना है वो पल,
और वो सफ़र ।।
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