Friday, 18 December 2015

Playing with words !!

Playing with words,
to inspire the world,
with my feelings
and the situations of life..

Situation could be yours,
Could be yours views for life,
I might be a medium,
to describe it, the way you like..


Thursday, 17 December 2015

Dedicated to old age people rather old age GEMS !!

आज ज़िन्दगी से कुछ अलग है सीखा,
ना हो ज़िन्दगी मैं सबकुछ मिठा ।
परेशानीयो की आदत मैं खोये,
कहीं कुछ पल की ख़ुशी से रोये ।।
हर दिन लिए एक ही राग,
ज़िन्दगी क्यों चलती नहीं बेदाग।
क्यों थोड़े जश्न के बाद,
लगते है खोए हमने जीवन से, कुछ पल है ख़ास ।।
ज़िन्दगी से जो भी सीखा,
यादों की छलनी से छानके परोसा ।
लिए मन में नए दुनिया को सिखाने की चाहत,
हर अपनी सिख बाटने से मिले उनके दिल को राहत ।।
खेल रही ज़िन्दगी उन्से आँख-मिचोली,
और वो मना रहे अपनों से अलग दीवाली-होली |
हर छोटे-बड़े कार्यो के लिए तरसती आँखे,
कोई साथ ले जा के उनका हाथ तो बांटे ।।
हे नई दुनियां,यूँ ना बढ़ो अपनी दुनिया में मदमस्त,
कही रहे ना जाओ, तुम्हे बनाने वालो के साथ से तुम त्रस्त ।
रखो उन्हें कुछ पल के लिए पास,
लिए वो बस दिल में ये छोटी सी आस ।।
By:
Vaibhav Bhardwaj Sharma

The Child Beggars !

दर दर क्यूँ भटक रहे है ये नन्हे कदम,
बेबाक, बेखोव्फ़, फिर भी लोगो की दया पर निर्भर, हरदम।
कहीं नन्हे दया के लिए, है लीये अजीब सी हट,
कहीं वो बन रहे हमारी दया के लिए, चौराहो पर नट।
कहीं वो ढूँढ रहे कचरे के ढेर मैं अपना सोना,
कहीं वो बना रहे हमारे कचरों से अपना खिलौना ।
है कुछ मासूम, है कुछ शैतान
और कुछ गलत संगती का शिकार,
बनाके बेबसी की ढाल, करते वो अनेको गलत काम ।
पर क्यों बढ़ रहे हम यूँही बेखबर,
ना रुके कभी, उनकी बातो से बेअसर ।
ना जाने, क्या है उनके जीवन की मज़बूरी।
ना जाने, क्या है खवाइशे उनकी ।
क्यूँ ना करे हम भी कोई प्रयास,
जिसे जगे उनके जीवन मैं भी कोई आस।
और बने वो जीवन के किसी मोड़ पर,
हमसे भी बेह्तर और सफल इंसान ।

When we are missing our close friends !!

युहीं क्यों मुख मोड़ रही है ज़िन्दगी,
जो थी कभी यारो से सजी ।
अपनी दुनिया मैं होके मह्श्गुल, ये ज़िन्दगी,
यारो को क्यों बीच मंझदार में, छोड़ चली ।।
थे जो हर पल साथ,
मुसीबत मैं थामे वो हाथ ।
गलती पे गालियों की बरसात,
हर ख़ुशी पे लिए वो जश्न भरी रात ।।
आज फिर लिए उनसे मिलने की आस,
ना जाने किये कितने प्रयास।
हरपल लिए वही पुराना लाप,
(I am busy, next time pakka)
जिनसे होती थी कभी, घंटो वार्तालाप ।।
क्या है ये कोई नियति ?
या है ज़िमेदारियो मैं कही खोई ज़िन्दगी,
या समाज से लुप्त दोस्ती।।
है ये जो भी,
है अब बस थमी सी ज़िन्दगी ।
यारो के संग बिताए लम्हों मैं कहीं खोई सी,
ये तन्हा ज़िन्दगी ।।
By: Vaibhav Bhardwaj Sharma

"Dedicated to ‪#‎PAPA‬ (Mr. Dinesh Kumar Sharma)

frown emoticon
उंगली थामे हम चले,
बेख़ौफ़,बेख़बर हर डगर पे ।
मंज़िल से अंजान,
बिंदास चले,ज़िन्दगी के हर सफ़र में ||
हर पल मिला आपका साथ,
थामे हम संस्कारो का हाथ ।
बढ़े हर मंज़िल की ओर,
लिए संग आपके अनुभव की डोर ।।
छूटी उंगली,
टूटी, यूहीं ज़िन्दगी की डोर ?
जिंदगी में मेरी,
बिन कहे क्यूँ आई वो शाम सबसे घनघोर?
जब चला मैं करने पंच तत्व में विलीन,
करके अनसुनी बिरह की हर चीख़ ।
रूठे आंसू, खामोश आँखों के संग
बदला हुआ था, इस नयी परिस्तिथि में मैं हर ढंग।
ढूंढता रहा वो कंधा,
लगाये गले जो एकपल,
बिना जिम्मेंदारी के अहसास के,
सीने से कुछ क्षण ।।
है आज भी लिए अनगिनत यादें ,
लिए संग खटी-मीठी नोक-झोक वाली बातें ।
ना माने ये दिल, की कहीं चले गए आप
क्योंकि,आज भी मेरी दुनिया के हर अहसास मैं बस्ते हो आप ।।

"मोल रिश्तों का"

आज कुछ गलत थे हम,
अपनों की भीड़ मैं अकेले थे हम,
लिए दिल मैं बहुत कुछ
कह ना सके क्यों अपनों से, अपनी बात हम ।

रिश्तों की,
वो प्यारी सी डोर,
खोई सी लगती है,
अब ना जाने किस ओर।
वापस बंधे, फिर उसे किसी पहर,
भुलाके दिल का सब जहर ।
आरज़ू ! ये हम दिल मैं लिए,
फिर भी, क्यों अपनी मंज़िल को जिए ।
आए कोई बिरहा, तो संग है खड़े,
फिर भी चले, संग ये पत्थर दिल लिए ।
हटाते ही, ओपचारिक्ताओ का पर्दा,
एकदूसरे से कैसे लिपट जाते हैं, हम।
बरसो की अनबन को
पल भर मैं यूहीं भुल जाते है, एक मुस्कराहट पर हम ।
एक बार, सिमटते रिश्तों के खत्म होते अस्तित्व को बचके तो देखो
एक बार, पैसो को भुलाके,
रिश्तों को जी के तो देखो ।
छोड़के तो देखो, एक बार !
पहले आप-पहले आप वाली हट।
और ना रखो दिल मैं, छोटे-बड़े वाली रट ।
छोटी सी ज़िन्दगी मैं,
बहुत कुछ है खोने को,
मुश्किल है, तो वो है,
अपनों को पाना ।
सबकुछ यही है छुट जाना,
अपनों की दुआओं के संग, इस दुनिया से एकदिन सबने है चले जाना।

"बदलते वक्त, बदलते अंदाज़ "

वक़्त बदलता है,
बदलता है अंदाज़ ।
क्यों बदलते है, हम,
जब बदलता है, संसार ।।
खुद को बदल लेते हैं, हम
जब दुनिया पूछती है, सवाल ।
क्या पूछते हैं हम; उनसे कभी,
कितना दे सकतो हो तुम साथ ।।
सही गलत के तराज़ू मैं,
अपनों को तोलते है, क्यों ?
ये दुनियां बिना जाने,
इतना बोलती है, क्यों ?
लिए खुशियो की क़ुरबानी,
चलत क्यो, दुनिया की जुब्बनी।
जब अपनों से मनमानी
फिर क्यों दुनियां की है, मानी ।
ना बदलो तुम,
ना बदलो तुम , अंदाज़।
साथ रहते हमेशा अपने,
चाहे हो आपस मैं कितनी भी खटास ।

"चल रही एक महामारी"

चल रही एक महामारी, उसपर भभक्ते दिन है भारी । देश थामके, की थी जो तैयारी, अब विफल हो रही, बारी-बारी ।। अम्फान (Cyclone) खेला, संग...