दर दर क्यूँ भटक रहे है ये नन्हे कदम,
बेबाक, बेखोव्फ़, फिर भी लोगो की दया पर निर्भर, हरदम।
बेबाक, बेखोव्फ़, फिर भी लोगो की दया पर निर्भर, हरदम।
कहीं नन्हे दया के लिए, है लीये अजीब सी हट,
कहीं वो बन रहे हमारी दया के लिए, चौराहो पर नट।
कहीं वो बन रहे हमारी दया के लिए, चौराहो पर नट।
कहीं वो ढूँढ रहे कचरे के ढेर मैं अपना सोना,
कहीं वो बना रहे हमारे कचरों से अपना खिलौना ।
कहीं वो बना रहे हमारे कचरों से अपना खिलौना ।
है कुछ मासूम, है कुछ शैतान
और कुछ गलत संगती का शिकार,
बनाके बेबसी की ढाल, करते वो अनेको गलत काम ।
और कुछ गलत संगती का शिकार,
बनाके बेबसी की ढाल, करते वो अनेको गलत काम ।
पर क्यों बढ़ रहे हम यूँही बेखबर,
ना रुके कभी, उनकी बातो से बेअसर ।
ना रुके कभी, उनकी बातो से बेअसर ।
ना जाने, क्या है उनके जीवन की मज़बूरी।
ना जाने, क्या है खवाइशे उनकी ।
ना जाने, क्या है खवाइशे उनकी ।
क्यूँ ना करे हम भी कोई प्रयास,
जिसे जगे उनके जीवन मैं भी कोई आस।
जिसे जगे उनके जीवन मैं भी कोई आस।
और बने वो जीवन के किसी मोड़ पर,
हमसे भी बेह्तर और सफल इंसान ।
हमसे भी बेह्तर और सफल इंसान ।
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