आज ज़िन्दगी से कुछ अलग है सीखा,
ना हो ज़िन्दगी मैं सबकुछ मिठा ।
परेशानीयो की आदत मैं खोये,
कहीं कुछ पल की ख़ुशी से रोये ।।
हर दिन लिए एक ही राग,
ज़िन्दगी क्यों चलती नहीं बेदाग।
क्यों थोड़े जश्न के बाद,
लगते है खोए हमने जीवन से, कुछ पल है ख़ास ।।
ज़िन्दगी से जो भी सीखा,
यादों की छलनी से छानके परोसा ।
लिए मन में नए दुनिया को सिखाने की चाहत,
हर अपनी सिख बाटने से मिले उनके दिल को राहत ।।
खेल रही ज़िन्दगी उन्से आँख-मिचोली,
और वो मना रहे अपनों से अलग दीवाली-होली |
हर छोटे-बड़े कार्यो के लिए तरसती आँखे,
कोई साथ ले जा के उनका हाथ तो बांटे ।।
हे नई दुनियां,यूँ ना बढ़ो अपनी दुनिया में मदमस्त,
कही रहे ना जाओ, तुम्हे बनाने वालो के साथ से तुम त्रस्त ।
रखो उन्हें कुछ पल के लिए पास,
लिए वो बस दिल में ये छोटी सी आस ।।
By:
Vaibhav Bhardwaj Sharma
ना हो ज़िन्दगी मैं सबकुछ मिठा ।
परेशानीयो की आदत मैं खोये,
कहीं कुछ पल की ख़ुशी से रोये ।।
हर दिन लिए एक ही राग,
ज़िन्दगी क्यों चलती नहीं बेदाग।
क्यों थोड़े जश्न के बाद,
लगते है खोए हमने जीवन से, कुछ पल है ख़ास ।।
ज़िन्दगी से जो भी सीखा,
यादों की छलनी से छानके परोसा ।
लिए मन में नए दुनिया को सिखाने की चाहत,
हर अपनी सिख बाटने से मिले उनके दिल को राहत ।।
खेल रही ज़िन्दगी उन्से आँख-मिचोली,
और वो मना रहे अपनों से अलग दीवाली-होली |
हर छोटे-बड़े कार्यो के लिए तरसती आँखे,
कोई साथ ले जा के उनका हाथ तो बांटे ।।
हे नई दुनियां,यूँ ना बढ़ो अपनी दुनिया में मदमस्त,
कही रहे ना जाओ, तुम्हे बनाने वालो के साथ से तुम त्रस्त ।
रखो उन्हें कुछ पल के लिए पास,
लिए वो बस दिल में ये छोटी सी आस ।।
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Vaibhav Bhardwaj Sharma
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