लिए अपनी अंश,
चला था मैं नए सफ़र पे।
भुलाके अपनी हस्ती,
समर्पित, उसपे हर डगर ।।
सजाए उसके ख्वाब,
भूला मैं अपनी हस्ती।
उसकी ज़िन्दगी के लिए,
भुलाके, वो यारो वाली मस्ती ।।
थी एक अद्भुत हस्ती
जो थी हर महफ़िल की शान,
आत्मविश्वास से सम्पूर्ण,
कला का परचम लहराए ।।
लिए हर रोज जशन
घड़ी से बेखोफ,
यारो की टोली लिए,
करते थे रातभर मटरगस्ती ।।
पर हूँ मैं अब बस,
काम मे मशगूल,
ज़िमेदारियो की मुस्कुराहट को,
ज़िन्दगी की सफलता से सजाये ।।
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